Monday 1 April 2013


A short History of Meghwal Samaj( In Hindi)
मेघ , मेघवाल या मेघवार , (उर्दू: میگھواڑ , सिंधी: ميگھواڙ ) लोग मुख्यरूप से उत्तर पश्चिम भारत में रहते हैं और कुछ आबादी पाकिस्तान में है. सन् 2008 में, इनकी कुल जनसंख्या अनुमानतः 2,807,000 थी, जिनमें से 2760000 भारत में रहते थे. इनमें सेवे 659000 मारवाड़ी , 663000 हिंदी , 230000 डोगरी , 175000 पंजाबी और विभिन्न अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते हैं. एक अनुसूचित जाति के रूप में इनका पारंपरिक व्यवसाय बुनाई रहा है. अधिकांश हिंदू धर्म को मानते हैं जबकि इनके पुर्वजो ने, ऋषि मेघ, कबीर , रामदेवजी और बंकर माताजी को प्रमुख आराध्य माना हैं. मेघवंश को राजऋषि वृत्र या मेघ ऋषि से उत्पन्न जाना जाता है
अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने अपनी 1871 में छपी पुस्तक ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ में प्रतिपादित किया कि आर्यों के आगमन से पूर्व मेघ असीरिया से पंजाब में आए और सप्त सिंधु (सात नदियों की भूमि) पर बस गए. आर्यों के दबाव के तहत, वे संभवतः पाषाण युग (1400-1200 वर्ष ईसा पूर्व) के दौरान महाराष्ट्र और विंध्याचल क्षेत्र और बाद में बिहार और उड़ीसा में भी बसे.. वे सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित हैं. वे एक संत ऋषि मेघ के वंशज थे, जो अपनी प्रार्थना से बादलों (मेघों) से बारिश ला सकता था. ‘मेघवार’ शब्द संस्कृत शब्द ‘मेघ’ से निकला है जिसका अर्थ है बादल और बारिश और ‘वार’ का अर्थ है ‘युद्ध’, एक ‘समूह’, ‘बेटा’ और ‘बच्चे’ (संस्कृत: वार अतः ‘मेघवाल’ और ‘मेघवार’ शब्दशः एक लोग हैं, जो मेघवंश के हैं. यह भी कहा जाता है कि मेघ जम्मू और कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे जहाँ बादलों की गतिविधि बहुत होती है. वहाँ रहने वाले लोगों को स्वाभाविक ही (मेघ, बादल) नाम दे दिया गया. मिरासियों (पारंपरिक लोक कलाकार) द्वारा सुनाई जाने वाली लोक-कथाओं में मेघों को सूर्यवंशी कहा गया है
इतिहास
मेघवालों के प्रारंभिक इतिहास या उनके धर्म के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. संकेत मिलते हैं कि मेघ शिव और नाग (ड्रैगन के उपासक थे). मेघवाल राजा बली को भगवान केरूप में मानते हैं और उनकी वापसी के लिए प्रार्थना करते हैं. कई सदियों से केरल में यही प्रार्थना ओणम त्योहारका वृहद् रूप धारण कर चुकी है. वे एक नास्तिक और समतावादी ऋषि चार्वाक केभी मानने वाले थे. आर्य चार्वाक के विरोधी थे. दबाव जारीरहा और चार्वाक धर्म का पूरा साहित्य जला दिया गया. इस बात का प्रमाण मिलता है कि 13वीं शताब्दी में कई मेघवाल इस्लाम की शिया निज़ारी शाखा के अनुयायी बन गए और कि निज़ारी विश्वास के संकेत उनके अनुष्ठानों औरमिथकों में मिलतेहैं. अधिकांश मेघों को अब हिंदू मानाजाता है, हालांकि कुछ इस्लाम या ईसाईधर्म जैसे अन्य धर्मों के भी अनुयायी हैं.
मध्यकालीन हिंदू पुनर्जागरण , जिसे भक्ति काल भी कहा जाता है, के दौरान राजस्थान के एक मेघवाल कर्ता राम महाराज, मेघवालों के आध्यात्मिक गुरु बने. कहा जाता है कि 19 वीं सदी के दौरान मेघ आम तौर पर कबीरपंथी थे जो संतमत के संस्थापक संत सत्गुरु कबीर (1488 - 1512 ई.) के अनुयायी थे
वर्ष 1910 तक, स्यालकोट के लगभग 36000 मेघ आर्यसमाजी बन गए थे परंतु चंगुलको पहचानने के बाद सन् 1925 में वे ‘आद धर्म सोसाइटी’ में शामिल हो गए जो ऋषि रविदास , कबीर और नामदेव देव (ये सभी कमज़ोर जातियों की धार्मिक परंपराओं के प्रतिष्ठित महापुरुष हैं) को अपना आराध्य मानती थी !
राजस्थान में इनके मुख्य आराध्य बाबारामदेव जी हैं जिनकी वेदवापूनम (अगस्त - सितम्बर) के दौरान पूजा की जाती है
पौराणिक संकेत
भारतीय पौराणिक कथाओं में राजऋषि वृत्र धार्मिक प्रमुख था और वह सप्त सिंधु क्षेत्र का राजा भी था. समस्त भारत पर शासन करने वाले नागवंशियों का वह पूर्वज था. नागवंशी अपने व्यवहार, शैली, योग्यता और उनकी गुणवत्ता में ईश्वरीय गुणों के लिए जाने जाते थे. वास्तुकला के वे विशेषज्ञ थे. वे नाग या अजगर की पूजा करते थे. मेघवालों को हिरण्यकश्यप , प्रह्लाद , हिरण्याक्ष, विरोचन, राजा महाबली (मावेली), बाण आदि के साथ भी जोड़ा जाता है.
ऐतिहासिक चिह्न
मौर्य काल के दौरान मेघवंश के चेदी राजाओं ने कलिंग पर शासन किया. वे अपने नाम के साथ महामेघवाहन जोड़ते थे और स्वयं को महामेघवंश का मानते थे. कलिंग के राजा खारवेल ने मगध के पुष्यमित्र को पराजित किया और दक्षिण भारतीय (वर्तमान में तमिलनाडु ) क्षेत्रों पर विजय पाई. कलिंग के राजा जैन धर्म का पालन करते थे. मौर्यों के पतन के बाद, मेघवंश के राजाओं ने अपनी शक्ति और स्वतंत्रता पुनः प्राप्त कर ली. चेदी,वत्स, मत्स्य आदि शासकों को मेघ कहा जाता था. गुप्त वंश के उद्भव के समय कौशांबी एक स्वतंत्र राज्य था. इसका शासक मेघराज मेघवंश से था और बौद्ध धर्म का अनुयायी था
मेघवंशियों का पेशा कृषि और बुनाई था.वे वर्ष में दो फसलें लेते थे. शेष समय वे अन्य संबंद्ध गतिविधियों में व्यस्त रहते थे महिलाएँ अपने कढ़ाई के काम के लिए प्रसिद्ध हैं और ऊन तथा सूती कपड़े की बढ़िया बुनकर हैं.
परिवारों के बीच बातचीत के माध्यम से यौवन से पहले ही विवाह तय कर दिए जाते हैं. शादी के बाद पत्नी पति के घर में आ जाती है. प्रसव के समय वह मायके में जाती है.
महिलाएँ उनकी सुंदर और विस्तृत वेशभूषा और आभूषणोंके लिए प्रसिद्ध हैं. विवाहितमहिलाओं को अक्सर सोने की नथिनी, झुमके और कंठहार पहने हुए देखा जा सकता है. यह सब दुल्हन को उसकी होने वाली सास "दुल्हन धन" के रूप में देतीहै. नथनियाँ और झुमके अक्सर रूबी, नीलम और पन्ना जैसे कीमती पत्थरों सेसुसज्जित होते हैं. मेघवाल महिलाओंद्वारा कढ़ाई की गई वस्तुओं की बहुत मांग है.
किसी बात के लिए नापसंद व्यक्ति का हुक्का-पान ी बंद करने की एक सामाजिक बुराई मेघों में है.
इनके प्रधान भोजन में चावल , गेहूं औरमक्का शामिल है, और दालों में मूंग, उड़द और चना. वे शाकाहारी नहीं हैं
आज मेघवालों में शिक्षितों की संख्या बढ़ी है और सरकारी नौकरियाँ प्राप्त कर रहे है !

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